मेडिकल छात्रों की आत्महत्या और पढ़ाई छोड़ने के मामले पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) द्वारा प्रस्तुत आंकड़े चिंताजनक हैं। पिछले पांच वर्षों में कम से कम 122 मेडिकल छात्रों की आत्महत्या हो गई है, जिसमें से 64 एमबीबीएस छात्र और 58 स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के छात्र शामिल हैं। साथ ही, 1,270 छात्रों ने पढ़ाई छोड़ दी है। इसके अलावा 2018 और 2022 के बीच 3 एमबीबीएस छात्रों और 155 स्नातकोत्तर छात्रों की आत्महत्या हुई।
इस चिंताजनक स्थिति के पीछे कई कारण हैं। शैक्षणिक दबाव, तनाव, मानसिक स्वास्थ्य चुनौतियों, प्रतिकूल कार्य वातावरण, और दंडात्मक बांड नीतियाँ छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का कारण बनती हैं। इन आत्महत्याओं के अंतर्निहित कारणों में अतिरंजित ड्यूटी समय, प्रतिकूल कार्य वातावरण, और पीजी छात्रों के लिए समय-अवकाश की कमी शामिल हैं।
इस समस्या का समाधान करने के लिए, संबंधित अधिकारियों को उचित बांड नीतियों की प्रारंभिक कार्यान्वयन की आवश्यकता है। छात्रों को शैक्षणिक दबावों से मुक्त करने के लिए, उन्हें प्राथमिकता देनी चाहिए। साथ ही, छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल और समर्थन की व्यवस्था की जानी चाहिए।
इस चुनौतीपूर्ण समय में, शैक्षिक संगठनों, सरकारी अधिकारियों, और समाज के सभी स्तरों को मिलकर काम करना होगा ताकि हमारे छात्रों को सही मार्ग पर लाने और उनकी सहायता करने में सफलता मिले। इससे न केवल छात्रों की जिंदगी बल्कि उनके परिवारों की भी सुरक्षा और खुशहाली सुनिश्चित होगी।
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